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कविता

एक आम चेहरे के प्यार में

विमल चंद्र पांडेय


(विद्या सिन्हा के लिए)

समय बहुत खास है दोस्तों
इसमें सिर्फ जरूरी बातों पर ही ध्यान दिया जाता है
लोग विशेष, रिश्ते इश्तेहार और शहर बनता जा रहा है अजायबघर
ऐसे में मेरे पास एक ऐसी आम बात है
जिसका महत्व सिर्फ उतना ही
जितना खीर में किशमिश का

फि़ल्मों के शौकीन पिताजी ने कभी भेजी थी एक चिट्ठी तुम्हें
जिसका जवाब भी दिया था तुमने
वह चिट्ठी और अपने हाथों से भेजी गई तुम्हारी तस्वीर
आज भी सुरक्षित है पिता की संदूक में

'न जाने क्यूँ होता है ये जिंदगी के साथ'
गाती तुम उतनी ही मासूम हो आज भी
इतिहास खुद को दोहराता है
इस बात का विश्वास दिलाता है मुझे मेरा मन आज
जब कैटरीनाओं और करीनाओं के जमाने में
चिकनी चमेलियों और उ ला ला से घिरा
मैं तुम पर मरा जा रहा हूँ विद्या सिन्हा !

जमीर का पोस्टर लगे बस स्टॉप पर
तुम जैसे मेरा ही इंतजार कर रही हो
रजनीगंधा के बासी फूल गुलदस्ते से हटा
अपने चेहरे जैसे ताजे फूल लगाती
कैसे सहेजती थी तुम इतनी सहजता विद्या
कि लगता था तुम्हारे घर का दरवाजा खुलता है
मेरी बालकनी के सामने

तुम्हारी सूती साड़ी और खुले बालों को याद करता मैं
बड़ी शिद्दत से सोच रहा हूँ
आम चेहरे वाली तुम्हारी सादगी भरी सुंदरता के हिस्से
क्यों आईं दुनिया भर की जद्दोजहद
क्यों आती है ?

समय के एक प्राचीन घर में सुरक्षित है तुम्हारी त्वचा की वही कांति
चेहरे की वही सादगी और आँखों की वही मासूमियत
जो अब संग्रहालयों में भी देखने को नहीं मिलती

तुम फिल्मों की नायिका हो यानि एक कल्पनालोक की वासी
यह मानने को मन तैयार ही नहीं ऐसा सादापन है तुम्हारा
हम आज के समय से ही पहचान पाते हैं अपने कल को न विद्या !
तुम कहाँ चली गई हो विद्या ?
फिल्में तो फिल्में हैं
आम जिंदगी से कहाँ गायब हो गई हो तुम ?
न किसी खिड़की से झाँकती दिखाई देती हो
न किसी बालकनी से नीचे देखती

ये बहुत असहज बात है
जिस पर हँसा जाएगा जल्दी ही
सबको कहीं न कहीं जाना होगा
लौट कर घर आने की बात कहना एक चुटकुला माना जाएगा
ऊँचे स्थानों पर सबको बैठ कर फीते काटने होंगे
और अखबारों के पन्नों पर या टीवी पर, नहीं तो पत्रिकाओं में छा जाना होगा
अपनी कहानियों, कविताओं नहीं तो अपनी हत्याओं से
सपनों के सुलगने में सबसे बड़ी आग होगी
प्रेम अवकाश की तलाश में बारिश में भीग रहा होगा

जब गायब हो रही हैं सभी सहज चीजें, सहज लोग, सहज जीवन
सभी को खास बनने की भूख है
ऐसे खासमखास समय में तुम जैसी आम को याद कर
तुम्हें प्रेम कर
मैं कविता लिखने के अलावा और क्या कर सकता हूँ विद्या ?

 


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